कन्या लग्न की कुंडली में बैठे हुए ग्रहों ने कैसे कुंडली में दोषों का निर्माण किया घरों (भावों) की दृष्टि से विस्तार से समझते हैं, ताकि आप जान सकें कि विवाह योग्य कुंडली क्यों नहीं होने का निर्णय लिया गया किन ग्रहों और भावों की स्थिति के आधार पर लिया गया।
🌼 कन्या लग्न की कुंडली – कुंडली दोषों का विश्लेषण
⚠️ 1. लग्न (1st भाव): मंगल + राहु
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लग्न में मंगल (जो अष्टम भाव का स्वामी भी है):
👉 मंगल का लग्न में होना क्रोधी, गुस्सैल, हठी प्रवृत्ति दर्शाता है।
👉 अष्टमेश होकर लग्न में बैठा मंगल – व्यक्ति को आउट ऑफ कंट्रोल बना देता है।
👉 क्रोध और सेक्सुअल डिजायर में असंतुलन – जीवनसाथी के साथ सामंजस्य में बाधा। -
राहु के साथ योग:
👉 राहु एक छाया ग्रह है, जो भ्रम, धोखा, नकारात्मकता लाता है।
👉 राहु+मंगल की युति को “अग्रेसिव और एक्सप्लोसिव” माना जाता है।
👉 ऐसा योग नाड़ी ज्योतिष में वैवाहिक जीवन के लिए हानिकारक होता है।
🎯 निष्कर्ष: लग्न ही व्यक्ति के स्वभाव को दर्शाता है। जब यहां पर गुस्सा और आक्रोश हावी हो जाए तो विवाह के बाद झगड़े, अलगाव तय माने जाते हैं।
⚠️ 2. सप्तम भाव (7th House): शनि + केतु
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सप्तम भाव जीवनसाथी, विवाह और दांपत्य जीवन को दर्शाता है।
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शनि:
👉 शनि ठंडा, अलगावकारी, विलंबक ग्रह है।
👉 सप्तम में बैठकर वैवाहिक सुख में देरी या दूरी का संकेत देता है।
👉 जीवनसाथी शांत, भावहीन या रोगी स्वभाव का हो सकता है। -
केतु:
👉 केतु "सेपरेटिव प्लेनेट" है – यह वियोग, भ्रम, मानसिक दूरी देता है।
👉 सप्तम में बैठा केतु विवाह को अपूर्ण, निरस बना देता है।
🎯 निष्कर्ष: शनि + केतु की युति वैवाहिक जीवन में ठंडापन, भावनात्मक दूरी, और टूटने का डर पैदा करती है।
⚠️ 3. सप्तमेश (गुरु/Jupiter) – नीच और वक्री
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सप्तमेश गुरु नीच राशि (मकर) में बैठा है + वक्री है।
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वक्री और नीच गुरु का अर्थ है –
👉 जीवनसाथी से जुड़ी अपेक्षाएं पूरी नहीं होंगी,
👉 संबंधों में धोखा, टूटन, या विवाह में भारी मानसिक पीड़ा हो सकती है। -
हालांकि गुरु पंचमेश भी है और पंचम व सप्तम का परिवर्तन योग बना रहा है: 👉 इससे लव मैरिज योग बनता है, लेकिन लव फेलियर के भी योग।
🎯 निष्कर्ष: गुरु की स्थिति कमजोर, वक्री और नीच होने के कारण विवाह सुख में बाधा, संबंध टूटने या अधूरे रहने के संकेत हैं।
⚠️ 4. चंद्रमा (3rd भाव में, नीच)
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चंद्रमा व्यक्ति की मनोवृत्ति और मानसिक स्थिरता दिखाता है।
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चंद्र नीच राशि (वृश्चिक) में है, और तीसरे भाव में बैठा है: 👉 मानसिक अस्थिरता, शक की प्रवृत्ति, भावनात्मक उतार-चढ़ाव।
👉 ऐसा चंद्रमा रिश्तों में ईर्ष्या, शंका, मनमुटाव लाता है। -
साथ ही यह चंद्रमा बुद्ध और शुक्र (नवम-दशम में स्थित) पर दृष्टि डाल रहा है: 👉 यह संकेत देता है कि वर्कप्लेस पर रिश्ते, या अनैतिक आकर्षण संभव हैं।
🎯 निष्कर्ष: मानसिक अशांति + नीच चंद्र + दृष्टि से विवाह के बाहर संबंधों की संभावना बनती है।
⚠️ 5. पंचम भाव (5th House): गुरु (नीच, वक्री)
- पंचम भाव प्रेम, संतान, रोमांस, और पूर्व संबंध दर्शाता है।
- पंचम में गुरु (जो सप्तमेश भी है) – नीच और वक्री स्थिति में: 👉 लव रिलेशन में धोखा, बार-बार प्रेम में असफलता। 👉 संतान योग भी कमजोर या बाधित।
🎯 निष्कर्ष: विवाह से पहले मल्टीपल रिलेशनशिप, लव फेलियर और शादी के बाद भी अस्थिरता की संभावनाएं।
⚠️ 6. नवम भाव (9th House): बुध
- नवम भाव धर्म, भाग्य और दूसरे पति का भी भाव माना जाता है।
- बुध यहां बैठा है और दशम में शुक्र के साथ परिवर्तन योग बना रहा है: 👉 नवम + दशम + पंचम + सप्तम = सब मिलाकर रिलेशनशिप्स का जाल। 👉 यह लड़की अपने कार्यस्थल पर पति जैसे संबंध बनाती है।
🎯 निष्कर्ष: शादी से पहले और शादी के बाद भी अनैतिक संबंध होने की संभावना।
⚠️ 7. दशम भाव (10th House): सूर्य + शुक्र
- दशम भाव कार्यक्षेत्र को दर्शाता है।
- शुक्र और बुध में परिवर्तन है – नवम दशम का संबंध: 👉 कार्यस्थल पर आकर्षण, संबंध, और हो सकता है विवाह जैसी स्थिति।
🎯 निष्कर्ष: यह योग "वर्कप्लेस रिलेशनशिप्स" के बहुत मजबूत संकेत देता है।
⚠️ 8. नवांश कुंडली में दोष
- नवांश में भी सप्तम भाव नीच के चंद्र से पीड़ित है।
- 6th भाव में शनि + मंगल – ये नवांश में सप्तम भाव को पाप कर्तरी में लेते हैं।
- नवांश का भी सप्तम भाव पूर्ण रूप से सुख नहीं दर्शाता।
📌 निष्कर्ष: विवाह में बाधक मुख्य दोष
दोष | प्रभाव |
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लग्न में मंगल + राहु | गुस्सा, असहनीय व्यवहार, यौन असंतुलन |
सप्तम भाव में शनि + केतु | वैवाहिक जीवन में ठंडापन, निरसता, टूटने की संभावना |
सप्तमेश गुरु नीच + वक्री | शादी में धोखा, अलगाव, अधूरापन |
नीच चंद्र (3rd भाव) | मानसिक अशांति, विवाहेतर संबंध |
पंचम-सप्तम, नवम-दशम परिवर्तन | प्रेम संबंधों की अधिकता, कार्यस्थल संबंध |
नवांश सप्तम में नीच चंद्र | विवाह सुख में कमी, वैवाहिक पीड़ा |
✅ निष्कर्ष (Final Verdict):
ऐसी कन्या की कुंडली में विवाह का स्पष्ट योग नहीं दिखता, भले ही गुण मिलान 31/36 हो।
अगर ऐसे योग वाले व्यक्ति से विवाह कर दिया जाए तो पति के स्वास्थ्य, मानसिक शांति, और वैवाहिक जीवन में गहरा संकट आ सकता है।
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